Friday, July 3, 2009

समलैंगिक रिश्तो को कानूनी मान्यता ? हम भारतीये है ?

दिल्ली हाई कार्ट के द्वि सदस्यों ने कल अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में समलैंगिक रिश्तो को कानूनी मान्यता यह कहते हुए देदी की यह धारा ३७७ संविधान के अनुछेध १४ ,२१, व १५ का अतिक्रमण है । तथा व्यस्क व्यक्ति अपनी इच्छा से समलैंगिक रिश्ते रख सकता है । समलैंगिंक रिश्ते मानशिक रूप से विकृत व्यक्तियों का रोग है । और इस रोग को फैलाने की इजाजत भारतीये समाज में तो कदापि नही मिलनी चाहिए । भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विराशत है और विश्व के सभी राष्ट्र भारतीये संस्कृति से प्रेरणा लेते है । हजारो विदेशी शोधकर्ता हिंदुस्तान की इस पवन धरा भारतीये संस्कृति पर शोध करने आते है । क्या हम मानसिक रूप से विकृत पाश्चात्य सभ्यता को अपनाने जा रहे है । अगर इन संबंधो को व्यक्तिगत स्वतंत्रता मानते हुए न्यायालय ने इन संबंधो को मान्यता दी है तो फिर तो इच्छा मृत्यु को खुदखुशी को भी मान्यता देनी चाहिए क्योंकि उसमे भी व्यक्ति अपनी इच्छा से ही मौत को प्राप्त करना चाहता है । हिंदुस्तान में ऐसे फालतू और विकृत मानसिकता के पोषक काननों को मान्यता देना भी किसी आत्महत्या से कम नही है । मुरली मनोहर जोशी ने बहुत सही बात कही है "दो न्यायाधीश भारतीये संस्कृति का भाग्य निर्धारित नही कर सकते "इसी प्रकार धर्मो के नेताओं ने इस निर्णय की कड़े शब्दों में भर्तसना की है । इनमे जमा मस्जिद के इमाम ,मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ,इसाई धर्म के धर्म गुरु डोमोनिक इनामुल आदि ने ........ । में पुनः कहता हूँ की ऐसे संबंधो की हिंदुस्तान की धरा में कोई जरुरत नही है इसके लिए तो और भी सख्त कानून होना चाहिए । यह अपराध की श्रेणी में था , है और रहेगा ॥

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