Sunday, August 2, 2009

भारतीय शिक्षा पद्दति और राष्ट्रवाद

भारत एक प्राचीन राष्ट्र है और उतनी ही समृद्ध यंहा की संस्कृति । प्राचीन काल में तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय में पुरी दुनिया के लोग अध्यन कराने आते थे । और यंहा का साहित्य भी बहुत ही समृद्ध रहा है या यूँ कहे की है भी तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी । मुग़ल आक्रमणकारियों ने सबसे पहले यंहा की सांस्कृतिक और शेक्षणिक सम्पति को नष्ट कराने का कार्य किया । कहा जाता है की मुगलों ने तक्षशिला और नालंदा विश्व विद्यालयों के पुश्ताकाल्यो को जलाया तो वो लगातार छः माह तक जलते रहे । उस समय की शिक्षा थी राष्ट्रवाद और रोजगार पर आधारित । मेरा यंहा कहने से तत्प्रिया यह नही है की उस काल में हमारे राष्ट्र के साथ क्या हुआ और क्या नही हुआ । आज में यंहा जो कहना चाह रहा हूँ वो है की आज की शिक्षा पद्दति से हमे नही तो रोजगार उपलब्ध होता है और नही राष्ट्रीय गोरव का । हमारी शिक्षा पद्दति मेकाले की शिक्षा पद्दति है । जब हम स्कूल में पढ़ते थे तो हमारे सामाजिक की किताबो में जो पाठ हुआ करते थे उनमे से एक पाठ का नाम था अकबर महान , में पूछना चाहता हूँ की उस बाल मन को हमे यह पढाना चाहिए की अकबर महान ? वो बाल मन तो अकबर को महान समझेगा और महाराणा प्रताप को दोषी । क्योंकि हम लोगों ने अकबर को महान बताया है और महान के सामने युध्ध ककरने वाला दोषी ही होगा । यह तो मेने एक छोटा सा उदहारण पेश किया है । हमारी शिक्षा पद्दति भारतीय होनी चाहिए । हमे हमारे बच्चो को अकबर की जगह महाराणा प्रताप की महानता के पाठ पढाने चाहिए जिसने अपनी जन्म भूमि और अपने लोगो के लिए राज पट छोड़ दिया और अत्याछ्री अकबर की आधीनता स्वीकार नही की और संघर्ष किया । आज की शिक्षा पद्दति हमे गुलामी के पाठ पढाती है । हमारी मानशिकता भी गुलाम लीगों की और हमे क्लेर्क बनाने वाली इस शिक्षा पद्दति को मजबूत मानशिकता के साथ हम लोगो को बदलना चाहिए ................ । तुष्टि करण को राष्ट्र हित में हम लोगो को छोड़ना ही पड़ेगा । वरना इस राष्ट्र के यह नो जवान नो जवानों की खाल में अंग्रेजो की गुलाम शिक्षा पद्दति से शिक्षित गुलाम ही इस देश के कारण धार होंगे । राष्ट्र के हित में हम सब को अपने छदम स्वार्थो की बलि देनी ही होगी ...... । । हम सब को गर्व होना चाहिए की हम महाराणा प्रताप ,शिवाजी , तात्या टोपे , सुभाष चंद्र बॉस ,भगत सिंह जैसे वीरो की इस धरती पर पैदा हुए है जिन्होंने सर तो कटा लिए लेकिन कभी सर झुकाया नही ....... ।