Saturday, April 18, 2009

राजनीतिक विचारधारा या स्वार्थ की राजनीति

विचारधारा नेताओं की कैसे परिवर्तित हो जाती है कहा नही जा सकता । कल तक जिस पार्टी की विचारधारा ख़राब थी आज नेतालोग उसी पार्टी की विचारधारा को अपना रहे है और कहरहे है की में इस पार्टी की विचारधरा से प्रभावित हो कर इस पार्टी में आया हूँ । कल तक जिस पार्टी की विचारधार ख़राब थी वो वो अचानक कैसे सही हो जाती है इसकाजवाब तो मेरे हिंदुस्तान के यह नेता ही दे सकते है । कुछ उदहारण है हिंदुस्तान की राष्ट्रीय राजनीति और राजस्थान की राजनीति के पर यंहा में राजस्थान के विशेष सन्दर्भ में बात कर रहा हूँ । गुजरात और उ प्र के कई उधाहरण हमारे सामने है । शंकर सिंह बाघेला ,जगदम्बिका पाल, पहले भाजपा में थे और अब कंहा है ? संजय निरुपम शिव सेना के विष्फोटक नेता उनकी भी रातो रात विचारधारा बदल गई और उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया ,संजय निरुपम के बारे में आज समाजवादी पार्टी के महासचिव और फ़िल्म स्टार संजय दत्त ने कहा की मेरे पिता यानि की सुनील दत्त संजय निरुपम के कांग्रेस में आने का सदमा बर्दास्त नही कर सके और इस दुनिया और कांग्रेस को छोड़ कर चले गए । नाफिषा अली मशहूर फ़िल्म स्टार वो भी कांग्रेस की विचारधारा को मानने वाली नेत्री थी पर उनकी विचारधारा भी रातो रात समाज वादी हो गई। कल्याणसिंह भाजपा के उ प्र के विष्फोटक नेता उनकी विचारधारा तो बहुत ही लचीली है भाजपा की विचारधारा ख़राब लगती तो पार्टी बना लेते है अच्छी लगे तो विलय और फ़िर ख़राब लगे तो समाजवादी विचारधारा ,साधू प्रसाद यादव ,राज बब्बर आदि और भी बहत नाम है जिनकी विचारधारा स्वार्थ के कारण बदल गई पर इन सब में एक नाम और लेना चाहूँगा वो नाम है सुपर स्टार अमिताभ बचन का जो की कांग्रेस की विचारधारा से प्रभावित होकर अभिनय को छोड़कर राजनीति में आए पर आज समाज वादी विचारधारा को थामे हुए है और समाज वादी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए नृत्य कर रहे है । विचार आप करे । अब हम चलते है राजस्थान की राजनीति की और । भरतपुर के नक् चढे राजपरिवार के महाराज विश्वेन्द्र सिंह जो पहले कांग्रेस के साथ थे फिर भाजपा में आए और फिर इन विधानसभा में कांग्रेस का दामन थामा पर जनता ने उनको यह अहसाश दिला दिया की राजतन्त्र कब का खत्म हो चुका है अब इस स्वतंत्र राष्ट्र में लोकतंत्र है। प्रहलाद गुंजल इनके जितना फ्लेक्सिबल नेता मेने तो नही देखा गुंजल ने भाजपा की व्यापक विचारधारा को त्याग कर अपने स्वार्थ हेतु जातिगत विचारधारा का दमन थाम लिया । गुंजल को सायद यह अहसास भी हो गया की लोकतंत्र का महल एक जाती विशेष के खंभे पर टिका हुआ नही है। किरोडी लाल मीना उनकी हालत भी अब पतली है वो अब घर के है ना घाट के । कांग्रेस के महासचिव जयसिंह राठोड ने कांग्रेस पार्टी में लोकतंत्र की हत्या के विरोध में अपनी अन्तर आत्मा की आवाज पर कांग्रेस को छोड़कर बहुजन समाज पार्टी में गए और चुनाव लड़ने की घोसना भी की परन्तु रातो रात ही सायद उनकी अन्तर आत्मा बाह्य धनाढ्य कांग्रेस प्रत्यासी रफीक मंडेलिया के किसी अज्ञात कारक के आगे दब गई जिसके परिणाम स्वरुप चंद घंटो में पुनः कांग्रेस में सामिल हो गए । क्या यह राजनितिक विचार धारा है या कोई और ...................

Thursday, April 9, 2009

भारतीय राजनीति और नेताओ का दोगलापन

भारतीय राजनीति में एक बहुत बड़ी विडम्बना है नेताओ का दोगला पन। जनता के सामने कभी अपनी पार्टी की विचार धारा को श्रेष्ठ बताते है और बेचारी जनता अपने प्रिये नेता की कही हुई बातों को सास्वत सत्य मानते हुए विरोधी राजनितिक दल से बिना वजह ही घृणा कर बैठती है । लेकिन वही नेताजी जब स्वार्थ सिद्ध न होने पर विरोधी विचार धारा की पार्टी में अपना उल्लू सीधा कराने चला जाता है तो बेचारी जनता अपने आप को ठगा ठगा महशुश करती है। और देखिये नेताओं का दोगलापन अभी राजस्थान की राजनीति में एक बहुत बड़ा प्रयोग हुआ । यह प्रयोग पूर्ण रूप से उतर प्रदेश में सफल भी हुआ स्वर्ण और दलित का गठ जोढ़ यु पी में सफलता के बाद बी एस पी । ने येही प्रयोग राजस्थान में किया । बी एस पी की विरोधी विचार धारा के समाज के व्यक्तियों को बी एस पी ने टिकिट दिए और कुछ व्यक्ति विधान सभा में पहुंचे । बी एस पी के ६ विधायक जीते और अब अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए अब कांग्रेस में चले गए जबकि वही विधायक कांग्रेस के विरुद्ध जीत कर विधानसभा में पहुंचे । इससे एक बात तो यह सिद्ध होती है की चरित्र में गिरावट चरम पर है और दूसरी बात यह की भ्रष्टाचार चरम पर है । एक तरफ़ जब वरुण गाँधी आतंकवादियों के विरुद्ध कोई बात कहते है तो उसे किसी समाज या धर्म के विरोधी मान कर उस पर रा सु का लगा दिया जाता है और एक तरफ़ जब लालू प्रशाद यादव जो की एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष होने के साथ साथ केंद्रीय रेल मंत्री भी है । लालू मुस्लिम समाज का अपने आप को हितेषी बताते हुए यंहा तक कह डाला की "में अगर गृह मंत्री होता तो वरुण को बुलडोज़र से कुचलवा देता " । क्या यह एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष के लिए शोभ्निये है। यह भी राजनितिक दोगलापन है ?।

Thursday, April 2, 2009

हिंदुस्तान और हिन्दी भाषा


हिंदुस्तान की भाषा क्या है । अगर कोई विदेशी ऐसा सवाल करे तो उसे जवाब देने वाला निश्चित रूप से येही कहेगा हिन्दी । किसी बच्चे से पूछा जाए की हिंदुस्तान की भाषा क्या है तो वो भी कहेगा की हिन्दी । तो मोटा मोटी एक बात समझ में आती है की हिंदुस्तान की भाषा हिन्दी है । पर वास्तव में ऐसा है नही । सदियों की गुलामी के बाद हिंदुस्तान अंग्रेजो की दासता से तो स्वतंत्र हो गया लेकिन मानसिक गुलामी से स्वतंत्र नही हो पाया । आज भी हम न्याय पालिका में जाए तो अगर कोई निर्णय होता है तो वो भी अंग्रेजी में होता है । हम किसी और विभाग में चले जाए तो वंहा भी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होता है। यह विडम्बना ही है की हम हिंदुस्तान के वासी है तथा फिर भी हमे अपनी मातृ भाषा को वह सम्मान दिलाने के लिए लगता है की एक और स्वतंत्रता संग्राम करना परेगा .