Sunday, August 2, 2009

भारतीय शिक्षा पद्दति और राष्ट्रवाद

भारत एक प्राचीन राष्ट्र है और उतनी ही समृद्ध यंहा की संस्कृति । प्राचीन काल में तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालय में पुरी दुनिया के लोग अध्यन कराने आते थे । और यंहा का साहित्य भी बहुत ही समृद्ध रहा है या यूँ कहे की है भी तो कोई अतिशयोक्ति नही होगी । मुग़ल आक्रमणकारियों ने सबसे पहले यंहा की सांस्कृतिक और शेक्षणिक सम्पति को नष्ट कराने का कार्य किया । कहा जाता है की मुगलों ने तक्षशिला और नालंदा विश्व विद्यालयों के पुश्ताकाल्यो को जलाया तो वो लगातार छः माह तक जलते रहे । उस समय की शिक्षा थी राष्ट्रवाद और रोजगार पर आधारित । मेरा यंहा कहने से तत्प्रिया यह नही है की उस काल में हमारे राष्ट्र के साथ क्या हुआ और क्या नही हुआ । आज में यंहा जो कहना चाह रहा हूँ वो है की आज की शिक्षा पद्दति से हमे नही तो रोजगार उपलब्ध होता है और नही राष्ट्रीय गोरव का । हमारी शिक्षा पद्दति मेकाले की शिक्षा पद्दति है । जब हम स्कूल में पढ़ते थे तो हमारे सामाजिक की किताबो में जो पाठ हुआ करते थे उनमे से एक पाठ का नाम था अकबर महान , में पूछना चाहता हूँ की उस बाल मन को हमे यह पढाना चाहिए की अकबर महान ? वो बाल मन तो अकबर को महान समझेगा और महाराणा प्रताप को दोषी । क्योंकि हम लोगों ने अकबर को महान बताया है और महान के सामने युध्ध ककरने वाला दोषी ही होगा । यह तो मेने एक छोटा सा उदहारण पेश किया है । हमारी शिक्षा पद्दति भारतीय होनी चाहिए । हमे हमारे बच्चो को अकबर की जगह महाराणा प्रताप की महानता के पाठ पढाने चाहिए जिसने अपनी जन्म भूमि और अपने लोगो के लिए राज पट छोड़ दिया और अत्याछ्री अकबर की आधीनता स्वीकार नही की और संघर्ष किया । आज की शिक्षा पद्दति हमे गुलामी के पाठ पढाती है । हमारी मानशिकता भी गुलाम लीगों की और हमे क्लेर्क बनाने वाली इस शिक्षा पद्दति को मजबूत मानशिकता के साथ हम लोगो को बदलना चाहिए ................ । तुष्टि करण को राष्ट्र हित में हम लोगो को छोड़ना ही पड़ेगा । वरना इस राष्ट्र के यह नो जवान नो जवानों की खाल में अंग्रेजो की गुलाम शिक्षा पद्दति से शिक्षित गुलाम ही इस देश के कारण धार होंगे । राष्ट्र के हित में हम सब को अपने छदम स्वार्थो की बलि देनी ही होगी ...... । । हम सब को गर्व होना चाहिए की हम महाराणा प्रताप ,शिवाजी , तात्या टोपे , सुभाष चंद्र बॉस ,भगत सिंह जैसे वीरो की इस धरती पर पैदा हुए है जिन्होंने सर तो कटा लिए लेकिन कभी सर झुकाया नही ....... ।

Saturday, July 11, 2009

आज का युवा और राजनीतिक पार्टिया

भारत की राजनीति में आजकल एक बहुत ही दमदार सगुफा चल रहा है । हर राजनीतिक पार्टी युवा नेतृत्व को आगे लाने की बात कर रहा है । इस मामले में राहुल गाँधी को आगे कर के कांग्रेस में इस सगुफे को पुरे हिन्दुस्तान में बहुत आसानी से भुना लिया और भारतीय जनता पार्टी पीछे रही । पर देखा जाए तो कांग्रेस में अपने युवा नेतृत्वा के फार्मूले की सचाई तो यह है की कांग्रेस तो एक प्रकार से अनुकम्पा नियुक्ति दे रही है । उन्ही नेता पुत्रो या पुत्रियों को आगे कर रही है जिनके माता पिता पहले से कांग्रेस या राजीनीति में थे । कोई अपनी मेहनत से जनता के बीचमें रहकर जनता के लिए काम करने वाले युवा नेताओं को आगे नही किया है । इस मामले में भारतीय जनता पार्टी ज्यादा ठीक है उसमे ऐसी बात नही है कोई भी युवा कार्यकर्ता अपनी मेहनत के बलबूते पर आगे बढ़ सकता है कांग्रेस का यंगिस्तान एक प्रकार से दिखावा है और अनुकम्पा नियुक्ति है । जबकि भारतीय जनता पार्टी में निश्चित रूप से कांग्रेस से कम युवा आगे आए है पर यह सही है जो आए है वो सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी मेहनत से आगे आए है । एक बात तो तय है की वास्तव में अगर युवा लोगो को इस देश में इस राज्य में नेतृत्वा करना है तो उनको भारतीय जनता पार्टी से अच्छा कोई विकल्प नही है क्योंकि कांग्रेस में नेतृत्वा कराने के लिए किसी नेता की संतान होना जरुरी है .....

Friday, July 3, 2009

समलैंगिक रिश्तो को कानूनी मान्यता ? हम भारतीये है ?

दिल्ली हाई कार्ट के द्वि सदस्यों ने कल अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में समलैंगिक रिश्तो को कानूनी मान्यता यह कहते हुए देदी की यह धारा ३७७ संविधान के अनुछेध १४ ,२१, व १५ का अतिक्रमण है । तथा व्यस्क व्यक्ति अपनी इच्छा से समलैंगिक रिश्ते रख सकता है । समलैंगिंक रिश्ते मानशिक रूप से विकृत व्यक्तियों का रोग है । और इस रोग को फैलाने की इजाजत भारतीये समाज में तो कदापि नही मिलनी चाहिए । भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विराशत है और विश्व के सभी राष्ट्र भारतीये संस्कृति से प्रेरणा लेते है । हजारो विदेशी शोधकर्ता हिंदुस्तान की इस पवन धरा भारतीये संस्कृति पर शोध करने आते है । क्या हम मानसिक रूप से विकृत पाश्चात्य सभ्यता को अपनाने जा रहे है । अगर इन संबंधो को व्यक्तिगत स्वतंत्रता मानते हुए न्यायालय ने इन संबंधो को मान्यता दी है तो फिर तो इच्छा मृत्यु को खुदखुशी को भी मान्यता देनी चाहिए क्योंकि उसमे भी व्यक्ति अपनी इच्छा से ही मौत को प्राप्त करना चाहता है । हिंदुस्तान में ऐसे फालतू और विकृत मानसिकता के पोषक काननों को मान्यता देना भी किसी आत्महत्या से कम नही है । मुरली मनोहर जोशी ने बहुत सही बात कही है "दो न्यायाधीश भारतीये संस्कृति का भाग्य निर्धारित नही कर सकते "इसी प्रकार धर्मो के नेताओं ने इस निर्णय की कड़े शब्दों में भर्तसना की है । इनमे जमा मस्जिद के इमाम ,मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ,इसाई धर्म के धर्म गुरु डोमोनिक इनामुल आदि ने ........ । में पुनः कहता हूँ की ऐसे संबंधो की हिंदुस्तान की धरा में कोई जरुरत नही है इसके लिए तो और भी सख्त कानून होना चाहिए । यह अपराध की श्रेणी में था , है और रहेगा ॥

Saturday, June 27, 2009

आज के युग में टेलीविजन की भूमिका

टेलीविजन आज हमारे रोजमर्रा की जरूरतों में शामिल हो गया है । बिजली पानी खाना इसी प्रकार टेलीविजन भी आज के मनुष्य की अहम् जरुरत बन गया है । हर मध्यम वर्गीय परिवार में आज एक नही बल्कि घर में जितने कमरे है उतने ही टेलीविजन मिलेंगे । अगर देखा जाए तो यह आज के युग की एक महत्वपूरण आवश्यकता है । टेलीविजन के कारण ही आज हम कंही की भी ख़बर को घर बेठे जान सकते है । ज्ञान वर्धन के हिसाब से तो यह ठीक है और हमारा मनोरंजन भी करता है । ज्ञान वर्धन और शुद्ध मनोरंजन तक तो भूमिका ठीक है । पर शुद्ध मनोरंजन के अलावा सांस्कृतिक प्रदुषण भी टेलीविजन के जरिये हमारे घरो में पंहुच चुका है । और भारतीये समाज के ताने बाने को तोड़ने का काम सबसे ज्यादा किसी व्यक्ति विशेष ने किया है तो उसका नाम है एकता कपूर । एकता कपूर के धारावाहिकों में आप देखते है की एक ही महिला के उसी घर में चार चार बार विवाह हो जाते है । औरत के विकृत रूप को बहुत ही सुंदर साड़ी और मेक उप में उसको बहुत ही सुंदर बना कर पेश किया जाता है । और दिखाया जाता है की किस प्रकार उअरत पर सदियों से जुल्म हो रहा है और उस ज़ुल्म को इन धारावाहिकों के मध्यम से सिर्फ़ और सिर्फ़ एकता कपूर के धारावाहिक देखने वाली महिलाए ही ज़ुल्म काठीक कर सकती है । इन धारावाहिकों को देखने से एक बात तो हमारे समाज में बहुत ही मजबूती से फैली है की हमारे इस हिन्दुस्तानी समाज में नई नई शादिया बहुत टूट रही है । कोई दहेज़ के नाम पर तो कोई महिला प्रताड़ना के नाम पर । साथ ही कुछ विदेशी चॅनल भी सांस्कृतिक प्रदुषण फैलाने में कमी नही छोड़ रहे है । आज हमारे समाज को सुधारने के लिए टेलीविजन और सिनेमा के लिए कोई कठोर कानून बनाना ही चाहिए । वरना यह आग कब हमारे घरो को जला कर रख कर देगी और हमे पता ही नही चलेगा क्योंकि हम तो सास भी कभी बहु थी और कसौटी ज़िन्दगी को देखने में व्यस्त रहेंगे । ............. सोचो ......

Friday, May 15, 2009

लेफ्ट राईट है या रोंग ?

कल यानि की १६ मई को इस देश के भाग्य का परिणाम आने वाला है । जनता की अदालत अपना परिणाम तय कर चुकी है कल उस परिणाम की घोसणा हो जायेगी । सरकार भाजपा गठबंधन की बनेगी या कांग्रेस गठबंधन की बनेगी यह तय हो जाएगा । पर एक बात तय है लेफ्ट पार्टिया फिर अपने पुराने साथी कांग्रेस गठबंधन के साथ जायेगी । कहने को तो यह पार्टिया मजदूर और शोषित वर्ग की है । तथा कहते है की यह लेफ्ट पार्टिया एक निश्चित विचारधारा के अनुरूप काम करती है । पर अब इनको सत्ता का स्वाद इनकी जीभ को लग गया है । चार साल सत्ता का सुख भोगने के बाद परमाणु करार के समय यह पार्टिया यु पी ऐ गठ बंधन से अलग हो गयी थी । पर वास्तव में इनका इस गठ बंधन से दूर होने के पीछे जो वास्तविक कारण है वो है इनके क्षेत्र में इनका ख़ुद का कांग्रेस विरोधी होना । और लेफ्ट पार्टिया अपने क्षेत्र में मुख्यतया कांग्रेस के विरोध में जीत कर आती है । और अगर यह गठबंधन में रहते तो इनको सीटो का भी ताल मेल करना पड़ता और कुछ सीट इनको कांग्रेस को देनी पड़ती जो इनको स्वीकार नही होता । तो परमाणु करार इनके लिए एक अच्छा मोका था इस गठ बंधन से दूर होने का और एक अच्छे खिलाड़ी की तरह यह इस देश के लाल खिलाड़ी तुंरत अपना नाता तोड़ लिया । और अगर कांग्रेस इस बार भी अपने गठ बंधन के साथ बड़ा गठ बंधन आता है तो यह लाल झंडे के झंडा बरदार अपना सिफारशी पत्र लिए सबसे आगे मिलेंगे और कहेंगे इस देश को साम्प्रदायिक ताकतों से बचाने के लिए हम यु पी ऐ को समर्थन कर रहे है । इस देश के लोगो को यह भी ध्यान होगा की स्वार्थ सिद्ध कराने में इन लेफ्ट पार्टियों से ज्यादा बड़ा खिलाड़ी कोई नही है । १९६२ में चीन के साथ युद्घ के समय यह इस देश को सांप्रदायिक ताकतों से बचाने वाले लेफ्ट के नेता चीन के सैनिको के लिए तोरण द्वार बना कर स्वागत कराने को आतुर थे । वो तो भला हो इस देश के जांबाज सिपाहियों का जिन्होंने अपनी जान देकर भी भारत माता की लाज बचाई थी । इन लेफ्ट के नेताओं ने तो चीन को अपनी मुक्ति वाहिनी सेना बताया था । यह हमारे देश के लेफ्ट नेता और इनकी विचार धारा । बरस्सत चीन में होती है और छतरी येह तानने वाले इन लेफ्ट का न तो कोई विचार है नही कोई विचारधारा यह तो बस सता के साथ रहना जानते है । .फैसला आपका लेफ्ट राईट है या रोंग

लेफ्ट राईट है या रोंग ?

Saturday, April 18, 2009

राजनीतिक विचारधारा या स्वार्थ की राजनीति

विचारधारा नेताओं की कैसे परिवर्तित हो जाती है कहा नही जा सकता । कल तक जिस पार्टी की विचारधारा ख़राब थी आज नेतालोग उसी पार्टी की विचारधारा को अपना रहे है और कहरहे है की में इस पार्टी की विचारधरा से प्रभावित हो कर इस पार्टी में आया हूँ । कल तक जिस पार्टी की विचारधार ख़राब थी वो वो अचानक कैसे सही हो जाती है इसकाजवाब तो मेरे हिंदुस्तान के यह नेता ही दे सकते है । कुछ उदहारण है हिंदुस्तान की राष्ट्रीय राजनीति और राजस्थान की राजनीति के पर यंहा में राजस्थान के विशेष सन्दर्भ में बात कर रहा हूँ । गुजरात और उ प्र के कई उधाहरण हमारे सामने है । शंकर सिंह बाघेला ,जगदम्बिका पाल, पहले भाजपा में थे और अब कंहा है ? संजय निरुपम शिव सेना के विष्फोटक नेता उनकी भी रातो रात विचारधारा बदल गई और उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया ,संजय निरुपम के बारे में आज समाजवादी पार्टी के महासचिव और फ़िल्म स्टार संजय दत्त ने कहा की मेरे पिता यानि की सुनील दत्त संजय निरुपम के कांग्रेस में आने का सदमा बर्दास्त नही कर सके और इस दुनिया और कांग्रेस को छोड़ कर चले गए । नाफिषा अली मशहूर फ़िल्म स्टार वो भी कांग्रेस की विचारधारा को मानने वाली नेत्री थी पर उनकी विचारधारा भी रातो रात समाज वादी हो गई। कल्याणसिंह भाजपा के उ प्र के विष्फोटक नेता उनकी विचारधारा तो बहुत ही लचीली है भाजपा की विचारधारा ख़राब लगती तो पार्टी बना लेते है अच्छी लगे तो विलय और फ़िर ख़राब लगे तो समाजवादी विचारधारा ,साधू प्रसाद यादव ,राज बब्बर आदि और भी बहत नाम है जिनकी विचारधारा स्वार्थ के कारण बदल गई पर इन सब में एक नाम और लेना चाहूँगा वो नाम है सुपर स्टार अमिताभ बचन का जो की कांग्रेस की विचारधारा से प्रभावित होकर अभिनय को छोड़कर राजनीति में आए पर आज समाज वादी विचारधारा को थामे हुए है और समाज वादी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए नृत्य कर रहे है । विचार आप करे । अब हम चलते है राजस्थान की राजनीति की और । भरतपुर के नक् चढे राजपरिवार के महाराज विश्वेन्द्र सिंह जो पहले कांग्रेस के साथ थे फिर भाजपा में आए और फिर इन विधानसभा में कांग्रेस का दामन थामा पर जनता ने उनको यह अहसाश दिला दिया की राजतन्त्र कब का खत्म हो चुका है अब इस स्वतंत्र राष्ट्र में लोकतंत्र है। प्रहलाद गुंजल इनके जितना फ्लेक्सिबल नेता मेने तो नही देखा गुंजल ने भाजपा की व्यापक विचारधारा को त्याग कर अपने स्वार्थ हेतु जातिगत विचारधारा का दमन थाम लिया । गुंजल को सायद यह अहसास भी हो गया की लोकतंत्र का महल एक जाती विशेष के खंभे पर टिका हुआ नही है। किरोडी लाल मीना उनकी हालत भी अब पतली है वो अब घर के है ना घाट के । कांग्रेस के महासचिव जयसिंह राठोड ने कांग्रेस पार्टी में लोकतंत्र की हत्या के विरोध में अपनी अन्तर आत्मा की आवाज पर कांग्रेस को छोड़कर बहुजन समाज पार्टी में गए और चुनाव लड़ने की घोसना भी की परन्तु रातो रात ही सायद उनकी अन्तर आत्मा बाह्य धनाढ्य कांग्रेस प्रत्यासी रफीक मंडेलिया के किसी अज्ञात कारक के आगे दब गई जिसके परिणाम स्वरुप चंद घंटो में पुनः कांग्रेस में सामिल हो गए । क्या यह राजनितिक विचार धारा है या कोई और ...................

Thursday, April 9, 2009

भारतीय राजनीति और नेताओ का दोगलापन

भारतीय राजनीति में एक बहुत बड़ी विडम्बना है नेताओ का दोगला पन। जनता के सामने कभी अपनी पार्टी की विचार धारा को श्रेष्ठ बताते है और बेचारी जनता अपने प्रिये नेता की कही हुई बातों को सास्वत सत्य मानते हुए विरोधी राजनितिक दल से बिना वजह ही घृणा कर बैठती है । लेकिन वही नेताजी जब स्वार्थ सिद्ध न होने पर विरोधी विचार धारा की पार्टी में अपना उल्लू सीधा कराने चला जाता है तो बेचारी जनता अपने आप को ठगा ठगा महशुश करती है। और देखिये नेताओं का दोगलापन अभी राजस्थान की राजनीति में एक बहुत बड़ा प्रयोग हुआ । यह प्रयोग पूर्ण रूप से उतर प्रदेश में सफल भी हुआ स्वर्ण और दलित का गठ जोढ़ यु पी में सफलता के बाद बी एस पी । ने येही प्रयोग राजस्थान में किया । बी एस पी की विरोधी विचार धारा के समाज के व्यक्तियों को बी एस पी ने टिकिट दिए और कुछ व्यक्ति विधान सभा में पहुंचे । बी एस पी के ६ विधायक जीते और अब अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए अब कांग्रेस में चले गए जबकि वही विधायक कांग्रेस के विरुद्ध जीत कर विधानसभा में पहुंचे । इससे एक बात तो यह सिद्ध होती है की चरित्र में गिरावट चरम पर है और दूसरी बात यह की भ्रष्टाचार चरम पर है । एक तरफ़ जब वरुण गाँधी आतंकवादियों के विरुद्ध कोई बात कहते है तो उसे किसी समाज या धर्म के विरोधी मान कर उस पर रा सु का लगा दिया जाता है और एक तरफ़ जब लालू प्रशाद यादव जो की एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष होने के साथ साथ केंद्रीय रेल मंत्री भी है । लालू मुस्लिम समाज का अपने आप को हितेषी बताते हुए यंहा तक कह डाला की "में अगर गृह मंत्री होता तो वरुण को बुलडोज़र से कुचलवा देता " । क्या यह एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष के लिए शोभ्निये है। यह भी राजनितिक दोगलापन है ?।

Thursday, April 2, 2009

हिंदुस्तान और हिन्दी भाषा


हिंदुस्तान की भाषा क्या है । अगर कोई विदेशी ऐसा सवाल करे तो उसे जवाब देने वाला निश्चित रूप से येही कहेगा हिन्दी । किसी बच्चे से पूछा जाए की हिंदुस्तान की भाषा क्या है तो वो भी कहेगा की हिन्दी । तो मोटा मोटी एक बात समझ में आती है की हिंदुस्तान की भाषा हिन्दी है । पर वास्तव में ऐसा है नही । सदियों की गुलामी के बाद हिंदुस्तान अंग्रेजो की दासता से तो स्वतंत्र हो गया लेकिन मानसिक गुलामी से स्वतंत्र नही हो पाया । आज भी हम न्याय पालिका में जाए तो अगर कोई निर्णय होता है तो वो भी अंग्रेजी में होता है । हम किसी और विभाग में चले जाए तो वंहा भी अंग्रेजी भाषा का प्रयोग होता है। यह विडम्बना ही है की हम हिंदुस्तान के वासी है तथा फिर भी हमे अपनी मातृ भाषा को वह सम्मान दिलाने के लिए लगता है की एक और स्वतंत्रता संग्राम करना परेगा .

Saturday, March 28, 2009

जाति वाद और भारत का युवा

भारतीय राजनीति में आज जातिवाद चरम पर है ,हर छुटभैया नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए अपने समाज का नेता बन कर अपनी नेतागिरी चमकाने के चक्कर में समाज को तो धोखा दे रहा है साथ ही देश को बहुत बड़ा नुक्सान पहुँचा रहा है। वो दिन भी दूर नही है जिस दिन लोग जातियों के अनुसार राज्यों की मांग कर ले .इस लिए मेरा यह कहना है की हम को हर हाल में इस जाति वाद के राक्षस को रोकना ही होगा यह जहर आपस में समाज को ही नही इस देश को भी तोड़ रहे है । इस जाति वाद के जहर को रोकने के लिए सबसे ज्यादा प्रयत्न किसी के कारगर हो सकते है तो वो है उन जातियों के नेताओं के जो इस जहर को फेला रहे है । और हमारा लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ जिसको हम मीडिया के नाम से जानते है वो अपनी भूमिका इमानदारी से निभाए । और इस देश को इस समस्या से बचाने के लिए जो महत्वपूर्ण और सबसे कारगर कोई हो सकता है तो वो है इस देश का युवा । और राजनितिक पार्टिया । राजनितिक पार्टियों के पास भी कोई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हित के मुद्दे न होना भी इस देश में जातीय राजनीति को बढ़ावा मिल रहा है । और इस देश का आम नागरिक जबतक इन जातीय नेताओं का बहिष्कार नही करेगा तो यह समस्या और भी बढेगी । पर इस समस्या का समाधान है युवा और शिक्षा । युवा को राजनीति में आना ही होगा आज हर युवा जो कॉलेज में पढ़ रहा है वो कोई तो डॉक्टर ,एन्जिनियेर , शिक्षक , क्लर्क ,और यंहा तक की वो चपरासी भी बनने को तैयार है पर शायद ही कोई स्टुडेंट यह कईकी मेरे को राजनीति करनी है । इस काजल की कोतःरी में युवा को आना ही परेगा इस देश को जाति वाद के इस महाकाल से बचने के लिए ।

Sunday, February 15, 2009

velentines day

वेलेंतिनेस डे के ऊपर जो हो हल्ला हो रहा है यह सिर्फ़ मीडिया की उपज है हम भारतीय संस्कृति को मानने वाले और भारतीय मूल्यों के अनुसार हम अपने जीवन चरित्र को और भी ऊँचा कर सकते है। पर इस व्यापारिक युग में हर कम्पनी हर व्यापारी सिर्फ़ एक ही चीज जनता है वो है पैसा कैसे बनाये ।
और उनके इस काम को चार चाँद लगाने के लिए हमारे लोकतंत्र का एक स्तम्भ जिसको हम मीडिया कहते है उसने और भी ज्यादा कोम्मोर्सिअल बना दिया है। न्यूज़ चैनल हर न्यूज़ को इस प्रकार पेश करते।
वेलेंतिनेडे का जिस प्रकार कुछ राष्ट्रवादी लोग विरोध करते है तो उस न्यूज़ को इस प्रकार दिखाते है जैसे कोई आतंकवादी हमला हो गया है। ये सही है सबको स्वतंत्रता से जीने का अधिकार है पर हम स्वतंत्रता के नाम पर हमारे सांस्कृतिक मूल्यों की बलि तो नही दे सकते । इस लिए देश की सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा करनी जरुरी है ।